नासा के अंतरिक्ष यात्री Sunita Williams And Butch Wilmore नौ महीनों तक अंतरिक्ष में रहने के बाद आखिरकार पृथ्वी पर लौट आए हैं। लेकिन लंबी अवधि के अंतरिक्ष मिशन न केवल शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण होते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अलगाव, नींद में बाधा और मिशन के बाद का तनाव अंतरिक्ष यात्रियों को कैसे प्रभावित करता है और वे इससे कैसे निपटते हैं।
अंतरिक्ष में 9 महीने: मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
Sunita Williams And Butch Wilmore ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर नौ महीने बिताए, जो कि एक नियोजित छोटे मिशन की तुलना में काफी लंबा था। इस दौरान तकनीकी समस्याएँ, शेड्यूल में देरी और अन्य लॉजिस्टिक चुनौतियाँ सामने आईं। लंबे अंतरिक्ष मिशन के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जाता है, जिससे भावनात्मक स्थिरता प्रभावित होती है।
कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल, मुंबई के कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ. शौनक अजिंक्या और तुलसी हेल्थकेयर, नई दिल्ली के सीईओ एवं वरिष्ठ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. गौरव गुप्ता ने इस विषय पर अपनी राय दी।
अंतरिक्ष में अलगाव और मानसिक तनाव

डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “लंबे समय तक अलग-थलग रहने से मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। सीमित स्थान में रहने और सामाजिक संपर्क की कमी से अकेलापन, चिंता और मनोभावों में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। साथ ही, प्राकृतिक रोशनी की अनुपस्थिति के कारण शरीर की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) प्रभावित होती है, जिससे नींद में गड़बड़ी और थकावट हो सकती है।”
डॉ. गुप्ता का मानना है कि लंबी अवधि की अंतरिक्ष यात्रा के दौरान एक जैसे रूटीन, बदलते माहौल की कमी और सूर्य की रोशनी की न्यूनतम उपस्थिति से डिप्रेशन का खतरा बढ़ सकता है।
लंबे अंतरिक्ष मिशन और पृथ्वी पर लौटने के बाद की चुनौतियाँ

अंतरिक्ष से लौटने के बाद सामान्य जीवन में ढलना आसान नहीं होता। डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “कुछ अंतरिक्ष यात्रियों में मिशन के बाद भावनात्मक अस्थिरता, स्वभाव में परिवर्तन और संबंधों में कठिनाई देखी गई है। लंबे मिशन से लौटने वालों में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसे लक्षण भी देखे गए हैं, जिनमें थकान, चिड़चिड़ापन और मानसिक अस्थिरता शामिल हैं।”
डॉ. गुप्ता का कहना है, “लंबे मिशन के कारण घर से दूर रहने की निराशा और मानसिक तनाव बढ़ सकता है। कई अंतरिक्ष यात्रियों को अपने परिवार से लंबे समय तक दूर रहने और निजी जीवन में बाधा के कारण तनाव झेलना पड़ता है।”
मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की रणनीतियाँ

अंतरिक्ष यात्रा के दौरान मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नासा कई उपाय अपनाता है। डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “अंतरिक्ष यात्री आत्म-मूल्यांकन तकनीकों का अभ्यास करते हैं और उन्हें मनोवैज्ञानिकों के साथ टेली-काउंसलिंग, जर्नलिंग और प्रेरणा बढ़ाने वाले पैकेज मिलते हैं। नियमित रूप से परिवार और दोस्तों से संपर्क बनाए रखना, एक्सरसाइज़ करना और माइंडफुलनेस व मेडिटेशन जैसी तकनीकें तनाव कम करने में मदद करती हैं।”
डॉ. गुप्ता का कहना है, “मिशन से पहले अंतरिक्ष यात्रियों को मानसिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा, स्ट्रक्चर्ड रूटीन, मनोरंजक गतिविधियाँ और व्यायाम उनके मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।”
पृथ्वी पर लौटने के बाद का मानसिक और शारीरिक बदलाव
अंतरिक्ष में महीनों बिताने के बाद पृथ्वी पर लौटना न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण होता है। डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “माइक्रोग्रैविटी का असर शरीर के संतुलन प्रणाली पर पड़ता है, जिससे वेस्टिबुलर डिसफंक्शन हो सकता है। इससे चक्कर आना, मोशन सिकनेस और असंतुलन की समस्या उत्पन्न होती है। मस्तिष्क, जो भारहीनता में ढल चुका होता है, उसे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के अनुकूल होने में समय लगता है।”
डॉ. गुप्ता का मानना है कि “गुरुत्वाकर्षण के बदलाव से थकावट, भ्रम और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। इसके अलावा, पृथ्वी पर लौटने के बाद सामान्य जीवन में वापसी के दौरान तनाव महसूस हो सकता है। इसके लिए काउंसलिंग, रेगुलर रूटीन और फिजिकल थेरेपी आवश्यक होती है।”
क्या अंतरिक्ष में नींद की गड़बड़ी डिप्रेशन को बढ़ा सकती है?

अंतरिक्ष में नींद की गड़बड़ी एक आम समस्या है। डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “स्पेस में बदलते समय क्षेत्र के कारण अंतरिक्ष यात्रियों की सर्केडियन रिदम बाधित होती है। नींद की कमी तनाव, मूड स्विंग्स और मानसिक कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है।”
डॉ. गुप्ता का कहना है कि “लंबे समय तक नींद में गड़बड़ी से पोस्ट-मिशन डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है। लाइट थेरेपी और स्ट्रक्चर्ड स्लीप मैनेजमेंट प्रोग्राम जैसे उपाय इस प्रभाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।”
क्या सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर को डिप्रेशन का खतरा है?
हालांकि सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर अनुभवी अंतरिक्ष यात्री हैं, फिर भी लंबी अवधि के स्पेस मिशन का मानसिक प्रभाव अपरिहार्य होता है। डॉ. अजिंक्या बताते हैं, “अध्ययन बताते हैं कि लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने के बाद मानसिक प्रदर्शन में गिरावट देखी जाती है। 85% महिला और 34% पुरुष अंतरिक्ष यात्री पोस्ट-मिशन डिप्रेशन के लक्षण दिखाते हैं। हालांकि, नासा की सख्त पोस्ट-मिशन सपोर्ट प्रणाली इस जोखिम को कम करने में मदद करती है।”
डॉ. गुप्ता कहते हैं, “सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर की मानसिक सहनशक्ति मजबूत है, जिससे उन्हें गंभीर मानसिक समस्याएँ होने की संभावना कम है। लेकिन, नींद की कमी और मिशन के तनाव का उनके मूड पर प्रभाव पड़ सकता है। नासा का पुन: एकीकरण कार्यक्रम और मनोवैज्ञानिक परामर्श उन्हें सामान्य जीवन में लौटने में मदद करेगा।”
Visit Home Page https://yuvapress.com/